पाठशाला अंग्रेजों का जमाना था। अशिक्षा, गरीबी और मूढ़ता का बोलबाला था। गाँव में जब कभी बाहर से कोई चिट्ठी या पत्र आ जाता तो उसे बाँचने वाला कोई न था। ऐसे में फिर पुरोहित व पाधा के घर के चक्कर लगाने लाज़मी हो जाते। और अगर वो किसी कारण वश दूसरे गाँव में अपने यजमान के यहाँ होते तो शहर में पटवारी के यहाँ जाने के इलावा और कोई अन्य रास्ता न था। अज्ञानता के इस युग में लगभग एक दर्जन छोटे-बड़े गाँवों का एक समूह कुछ नया कर-दिखाने की होड़ में था। संयोग से दो-चार भले आदमी