चौदह बातें न जाने कब तक चलती रहीं। गौरांबर को यह भी पता न चला कि कब उसे गहरी नींद आ गयी। अब उसकी आँख खुली तो सवेरे के छ: बजे थे। उठते ही उसने देखा, बूढ़ा और शंभूसिंह वहाँ नहीं थे। वह अनमना-सा उठ बैठा और इधर-उधर देखने लगा। वह अभी बीड़ी सुलगाकर माचिस की तीली दरवाजे पर फेंकने ही जा रहा था कि दरवाजे से पुखराज आ गया। आकर बोला— ''काका और शंभूसिंह जी मन्दिर में चले गये हैं।'' लड़का शंभूसिंह को भी काका ही कहता था, मगर गौरांबर को बताने के लिए शंभूसिंह का नाम लिया। पुखराज