स्वयंवधू - 27

सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत ले, वो बिना किसी की नज़र पड़े नीचे गयी। उसने उन पर ध्यान देना शुरू किया। कवच कहीं नहीं दिखा।"वृषाली, एक पेट कैफ़े कैसा रहेगा?", उसने पूछा,उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, शहरों में तो यह बहुत आम बात है।","सही कहा। मैं अपना पहला प्रोजेक्ट शहर में नहीं करना चाह रहा था।", उसने थोड़ी देर दिमाग लगाकर, "अगर हम अपना कैफ़े वहाँ खोले जहाँ कोई और कंपनियाँ ना गयी हो?!","ज़मीन के नीचे, आसमान के पार और बादलो की गोद में कहाँ अपनी नौकरी खोना चाहते हो