मंजिले - भाग 4

  • 1.1k
  • 453

                   मंजिले ----   ( देश की सेवा ) मंजिले कहानी संगरे मे कुछ अटूट कहानिया जो इंसान के मर्म बन गयी। जिन्दा मार गयी, खत्म होने से अच्छा हैँ, लौकिक पन ढेर सारा हो। तबदीली किसे रोक पायी हैँ, इंसान को कोई नहीं मारता, हलात कभी कभी मार देते हैँ। हलात हम खुद ही ऐसे बना लेते हैँ, कि खुद ही मर जाते हैँ। सच मे कहता हुँ, मोहन दास मेरा ऐसा ही देश भगत  हैँ,  जो देश के लिए जान की बाज़ी लाने से भी पीछे नहीं हट सकता।सितारा कब चढ़ जाये और