द्वारावती - 67 - 68

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67महादेव की संध्या आरती से जब गुल लौटी तब उत्सव तट पर खड़ा था। उसने गुल को निहारा। गुल ने उन आँखों में कुछ देखा।“क्या इस समय तुम अपने प्रायोजन को व्यक्त करना चाहोगे?” “मेरे प्रश्न इस नगरी के राजा से सम्बंधित है। तुम जिस राजा की प्रजा हो उस राजा के विषय में मेरे प्रश्नों का उत्तर तुम दे सकोगी? तटस्थ भाव से?”गुल क्षण भर विचार के लिए रुकी। “मैं जानती हूँ कि तुम द्वारिकाधीश की बात कर रहे हो।”“मैं जानता हूँ कि अपने राजा के विषय में कोई भी प्रजाजन तटस्थ नहीं रह सकता। उसके प्रति पक्षपात सहज होता