काग़ज़ के फूल - संजीव गंगवार

ज़िंदा रहा तो मिली गालियाँमरने के बाद मिली  तालियाँदोस्तों... जाने क्या सोचकर यह टू लाइनर आज से कुछ वर्ष पहले ऐसे ही किसी धुन में लिख दिया था मगर अब अचानक यह मेरे सामने इस रूप में फ़िर सामने आ जाएगा, कभी सोचा नहीं था। तब भी शायद यही बात ज़ेहन में थी कि बहुत से लोगों के काम को उनके जीते जी वह इज़्ज़त..वह मुकाम..वह हक़ नहीं मिल पाता, जिसके वे असलियत में हक़दार होते हैं। मगर उनके इस दुनिया से रुखसत हो जाने बाद लोगों की चेतना कुछ इस तरह जागृत होती है कि उन्हें उनकी..उनके काम की