नीलम कुलश्रेष्ठ डॉ. उर्मिला शिरीष जी ने अपने उपन्यास 'चाँद गवाह 'के शीर्षक को पता नहीं किन अर्थों के लिए चुना लेकिन मैं इसे दो अर्थों में ले रहीं हैं। एक तो चाँद या उसकी नशीली चांदनी गवाह होती है स्त्री पुरुष के आत्मीय संबंधों की। दूसरा चाँद सृष्टि की रचना के आरम्भ से गवाह है कि किस तरह कुछ अटल नियम इस तालिबानी व्यवस्था के कारण स्त्री को जकड़े हुए हैं। चाँद गवाह है कि स्त्रियां इनसे लड़कर किस तरह अपना रास्ता बनातीं हैं। कुछ बानगी देखिये : ---हर तीसरे चौथे घर का पुरुष किसी नशे का शिकार