अब तक : वाणी जी " पर विक्रम... " विक्रम ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा " सो जाइए दादी... । रात काफ़ी हो गई है..... " ।बोलकर विक्रम वहां से बाहर निकल गया । वाणी जी वहीं खड़ी उसे जाते हुए देखती रही । वाणी जी खुद से बोली " कुछ सही नहीं लग रहा विक्रम... । तुम कुछ गलत मत होने देना... " । अब आगे : विक्रम बाहर गार्डन में आकर बैठ गया । उसने अपनी कोहनी को घुटने पर टिकाया और चेहरे को हाथों में भरकर झुक कर बैठ गया । शिविका के साथ