द्वारावती - 65

65                                    “ओह, यह कथा है गुल से पंडित गुल बनने की?” गुल की कथा देख, स्तब्धता में उत्सव बोल पडा।“एक अबोध कन्या की जीवन यात्रा ! जिसने उसे पंडित गुल बना दिया। इस यात्रा को देखते देखते रात्रि व्यतीत हो गई। ब्राह्म मुहूर्त प्रारम्भ हो चुका है।मैं इस प्रवाह में इतना प्रवाहित था कि मुझे समय का संज्ञान ही नहीं रहा। समय जैसे एक नदी हो और मैं उसमें स्नान करता रहा। इसमें डुबकी लगाने पर मैं निर्मल हो गया हूँ। गुल, तुम्हारा यह