युवा किंतु मजबूर - पार्ट 4

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दो महीने बीत चुके थे राकेश अब फिर से बेरोजगार हो चुका था। सब्जी के व्यापार में घाटा लगने की वजह से उसने दुबारा धंधे का नहीं सोचा। इधर किशोर बनारस में वहाँ के प्रसिद्ध लेखक प्रशांत आलोक जी के साथ मिल कर साहित्य क्षेत्र मे लगा हुआ है। राकेश सुबह रोज उठता और बस स्टैन्ड पर सामान ढोने का काम करता। शाम को खाना खा कर सो जाता। उसके पास एक थैला था। जिसमे दो बुशर्ट ओर एक पेंट थी और अखबार मे पलेट कर बंधी हुई किशोर की डायरी। वह दिन भर बस इधर उधर घूमता रहता। और