कथाओं का आँगन - पूजा मणि

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आप सबने ये पुरानी कहावत सुनी तो होगी ही कि..'सहज पके सो मीठा होय' अर्थात किसी भी चीज़ को परिपक्व होने अर्थात पकने के लिए पर्याप्त समय की ज़रूरत होती है। मगर आजकल के ज़माने में सब्र कहाँ। जल्दबाज़ी के चक्कर में जहाँ एक तरफ़ कैमिकल के प्रयोग से फल कभी ज़्यादा पक कर गल जाता है तो कभी बाहर से पका और भीतर से कच्चा या फ़ीका रह जाता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ इस जल्दी से जल्दी और ज़्यादा से ज़्यादा पा लेने की  भेड़चाल से हमारा साहित्यजगत भी अछूता नहीं रह पाया है। इस हफ़ड़ा-धफड़ी (आपाधापी) के