सप्तम अध्याय दूर हुआ भ्रम, जाग गई ज्यौं, अपने अस्त्र संभाले। तोड़ा कुड़ी का दर्रा- पाठा,तब आगे के पथ हाले।। सोचो क्या मनमस्त यहां, हर लीला है न्यारी। चलते रहना ही जीवन है,कुछ करो नई तैयारी।।137।। बन विकराल नौंन तब चल दी, दई पाषाणें तोड़। खड़ा बेरखेरा कर जोड़त, करो कृपा, सब छोड़।। आर्त अर्चना सुनी नौंन ने, सौम्य रूप अपनाया। दोनों तरफ भरी हरियाली, प्रेम- प्यार बर्षाया।।138।। आगे चली निहारत चहुदिस, बेरखेड़ा को कर पार। भरका, खायीं बनाई लवणा, खोड़न के चहुं द्वार।। आगे बढकर, लोहागढ़ की, बुर्जों से जा टकरानी। लोहागढ़ का किला अजब, जो जाटों की छावनी।।139।।