नौं सौ रसियों की रसभीनी, मन अबनी सरसाई। गौरव बांटत दोनों कर, बनवार शहर पर आई।। अवध धाम बनवार बन गया, सरयू नदि सी पाकर। तन मन के मल दूर हो गए, पाबन जल में नहांकर।।51।। अगम पंथ में,पंथ बनाती, ग्राम ककरधा आई। छिद्र –छिदा के सभी मैंटकर हृद पर नहर विठाई।। शूल मिटाती द्विकूलों के किशोरगढ़ को पाया। रूप किशोर बनाया उसका,भदेश्वर को सरसाया।।52।। कहां भदेश असुर का स्थल, शाप मुक्त सा कीना। पंच महल की भूमि बना जो, सबका स्वर्ण नगीना।। दौलत बांटत दौलत पुर को, रिझा-रिझौरा काया। दौनी को गौनी सी करके, मैंना चमन बनाया।।53।। बेरों के