दूसरा अध्याय बांटत द्रव्य अपार, चल दई आगे गंगा माई। पर्वत काटत चली, गुप्त कहीं प्रकट दिखाई।। पर्वत अन्दर जल भण्डारन, विन्ध्याटवी हर्षायी। खुशियां लिए अंक में अपने, नौनन्दा पर आई।।35।। नौंनन्दा, गो नन्दा हो गया, अति मन में हर्षाया। नौन नदीयहां लवण हो गई, लवणा नाम सुहाया।। सिया राम कह, सियाबाई से, चलती यहां तक आई। कई नाम, धायी बन बहती, भरती गहबर खाई।।36।। गिर्द क्षेत्र को धन्य कर दिया, गिरदावरी की न्यारी। विन्ध्याचल को काटत, पाटत, कहीं न हिम्मत हारी।। बड़भागी नौंनन्दा हो गया, बड़भागी जन जीवन। सबने समृद्धि पायीं सारी, कहीं न कोई टीमन।।37।। हिमगिरि से ज्यौं