उन्नीसखरगोश भी नाच उठे गुरूवार अट्ठारह मई २००६ आज जियावन आया था। उसने हरखू की व्यथा बताई। आसपास क्या हो रहा है? इसे भी। हरखू का खेत चला गया। बच गई केवल मड़ई और आबादी की थोड़ी सी ज़मीन। उसी में कभी कभी मूली-गाजर उगा लेता। एक गाय पालकर किसी तरह गुजर-बसर करता। एक ही लड़का था। बम्बई में रंगाई-पुताई करता। साल दो साल में कभी आता। हजार-पाँच सौ घर में रहकर खर्च कर जाता। फिर बम्बई । खेत जब मालिक ने जोत