सत्रहबाघ और खरगोश शुक्रवार, बारह मई २००६ रात के दस बज गए हैं। सामने सुमित और जेन की चिट्ठियाँ हैं। मैंने सुमित को लिखा था कि वे बहादुर की लड़ाई के लिए यहाँ आएँ। इससे हम सभी को बल मिलेगा। पर उनकी चिट्ठी में कहीं भी यहाँ आने का कोई संकेत नहीं। ठीक ही है वातानुकूलित कमरे कहाँ मिलेंगे यहाँ बहस करने के लिए? गोल मोल बात से बात कहाँ बनती है? जेन ने कम से कम अपनी कमजोरी को स्वीकार तो किया। सुमित विद्वता