लालच कहूँ या लाचारी

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लघु कथासुबह के 10 बजे थे, सबके ऑफिस और कॉलेज जाने का वक्त था ये , मैं रोज की तरह ही बस का इंतेज़ार कर रही थी कॉलेज जाने के लिए , की तभी मेरी ध्यान एकाएक सामने लगी भीड़ पर जाती है,मुझे भी जिज्ञासा हुई कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जो वहाँ इतना भीड़ लगा हुआ है,मैं भी उस भीड़ के बीच पहुँची तो जो मैंने देखा मेरी हाथ पैर कांप गए, एक बच्चा बेसुद हालत में पड़ा था, उसका सर उसकी माँ ने अपने गोद मे रखा हुआ था, जो लहूलुहान था, वही वो मा रोती बिलखती