राजो इसी नाम से सब उसे पुकारते थे। बड़े घर की इकलौती लड़की। लाड़ प्यार में कुछ बिगड़ सी गई थी। मां चंचल स्वभाव पर अकुलाया करती थी, लेकिन बाबूजी कहते अभी उम्र ही क्या है कुल जमा दस साल की तो है हमारी बिटिया। राजो पूरा दिन कस्बे भर में घूमा करती। धमा-चौकड़ी मचाती, कभी इसे चिढ़ाती तो कभी उसे परेशान करती। उसके बाबूजी कस्बे के सेठ थे, नाम रमाकांत श्रीवास्तव। उनके अदब और प्रभाव के मारे कोई कुछ कह नहीं पाता। वैसे तो रमाकांत सरल और सुलझे स्वभाव के थे, सबसे प्रेम से बात करते, घर आए हर