अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 57

कोई और खाने के बर्तन ना उठा ले ये सोचकर मैत्री ने जल्दी जल्दी खाके अपना खाना खत्म कर लिया और इस इंतजार मे बैठ गयी कि सबका खाना पूरा हो जाये तो वो ही सबके बर्तन उठाकर रसोई मे रखे.... कोई और ना रखे.... लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि मैत्री के बाद सबसे पहले विजय ने खाना खत्म किया और अपनी खाने की झूटी प्लेट उठाकर अपनी जगह से उठने लगे... उन्हे अपने बर्तन उठाते देख मैत्री ने कहा- पापा जी बर्तन मुझे दे दीजिये... मै ले जाउंगी...विजय ने प्यार से कहा- अरे कोई बात नही बेटा... मुझे हाथ