अनमने ढंग से सोफे पर से खड़ी हो कर थके हुए और धीमे कदमों से सुधा ने किचन का रुख किया, लगभग पांच मिनट बाद ही चाय का कप लेकर पुन: सोफे पर आ कर बैठ गई। न जाने क्यों आज सुधा के चेहरे पर थकी हुई परेशानी स्पष्ट दिखाई देने लगी।चाय को हल्के से शिप किया, कप सामने टेबल पर रख दिया और पुन: सोफे से उठ कर मैनहोल की बाहर की ओर खुलने वाली खिड़की के पास आ कर बाहर देखने लगी। सूनी आंखों से ऊपर सूने आसमान को देखने लगी। कब गाड़ी आ कर मैनहोल के बाहर