शाम को लखनऊ से निकलकर कानपुर पंहुचते पंहुचते रात के करीब आठ बज गये थे, घर के अंदर जाने के बाद जतिन ने सबसे कहा- देर हो चुकी है... सब लोग थके हुये भी हैं तो मै एक काम करता हूं, मै बाहर से खाना ऑर्डर कर देता हूं....जतिन के ऐसा कहने पर मैत्री धीरे से बोली- मै बना देती हूं ना, मुझे थकान नही हो रही है...मैत्री की बात सुनकर बबिता ने कहा- नही बेटा आज रहने दो कल से तुम्ही रसोई संभालना मेरे साथ, आज तुम भी आराम करलो...संस्कारी मैत्री चूंकि बड़ो की बात नही काटती थी इसलिये