साथिया - 97

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शालू ने सारा सामान पैक कर लिया पर उसे वो  फाइल नहीं मिल रही थी जिसमें वह  ईशान  के लिए लेटर लिखती रहती थी। "यही तो रखी थी मैंने ना जाने कहां गई? अब क्या ही फर्क पड़ता है। अब तो वहां जा ही रही हूं सामने मुलाकात होगी  ईशान  से।   उन  चिट्ठियों  की  कोई वैल्यू नहीं अगर  ईशान  मुझ पर विश्वास नहीं करता  या  मुझसे नाराज रहता है। बाकी  अब आगे क्या होगा वहीं जाकर पता चलेगा। यहां पापा हम दोनों की शादी के बारे में सोच रहे हैं और मुझे तो यह भी विश्वास नहीं है कि  ईशान मेरी