द्वारावती - 50

  • 702
  • 297

50सूर्यास्त का समय हो रहा था। समुद्र की तरंगें अपना कर्तव्य निभाती हुई तट पर जाकर विलीन हो रही थी। वह अपना कर्तव्य शांत रूप से निभा रही थी। उनमें कोई उन्माद न था। समुद्र का यह रुप इतना शांत था जैसे कोई शांत नदी। इतनी शांति में पूर्णत: शांति से गुल की प्रतीक्षा कर रहा था केशव। एक असीम शांति व्याप्त थी वहाँ। सूर्य अपने लक्ष्य के प्रति गति कर रहा था। उसकी गति तीव्र होती जा रही थी। केशव उस गति को शांत चित्त से निहार रहा था। सूर्य क्षितिज पर आ गया। समुद्र के स्पर्श से अल्प अंतर पर