ये पूर्णिमा की रात थी,चांद अपनी चांदनी को हर तरफ बिखेरे हुए थी,और हड्डी तक को कपकपा देने वाली हवा पूरे वातावरण को सर्द बना रही थी,कुछ ही देर में इशांक को उस ठंडी हवा ने इतना सर्द कर दिया की वो खिड़की बंद करने लगा,उसी पल गार्डन में एक पेड़ के नीचे बैठी कनीषा पर उसकी नजर पड़ी,जो ऐसे बैठी थी जैसे वहीं पर जम गई हो।।।कुछ और दो मिनट तक उसे यूं ही घूरते रहने के बाद इशांक ने खिड़की को धम्म से बंद किया और आ कर सोफे पर बैठ गया,जिसके बाद कनिषा से अपना ध्यान हटाने