"यह असाइनमेंट तो जान की आफ़त ही बन गया है। कितना तो सिर खपा चुकी हूं, अब और क्या करूं समझ नहीं आता।" जाह्नवी ने झटके से किताबों का ढेर लाइब्रेरी की टेबल पर पटकते हुए कहा।लाइब्रेरियन ने उसे गुस्से से घूरा और चुप रहने का इशारा किया तो वह सॉरी करते हुए बाहर लॉन में आकर बैठ गई। ज्योति भी उसी के साथ चली आई।"सर का दिमाग़ तो बुढ़ापे में सटक चुका है। पर तू क्यों इतना लोड लेती है। उनके ज़माने में गूगल नहीं था तो हम क्या करें। सर्च कर ले न टॉपिक्स क्या परेशानी है? ज्योति