कर्म और भाग्य का समीकरण गोविंद एक सीधा सच्चा बालक था। संपन्नता के अभाव में भी उसने कभी निराश होना नहीं सीखा। वह हर छोटी से छोटी उपलब्धि में खुशियाँ और संतुष्टि तलाश ही लेता था। सत्कर्म, बौद्धिक कौशल शारीरिक सौष्ठव, मृदुव्यवहारिकता जैसे गुणों ने उसे नेक इंसान बना दिया था। बावजूद इनके यह सभी जानते हैं कि अभाव और संपन्नता के अंतर को कभी पाटा नहीं जा सका है। विद्यालयीन जीवन में उसने इस अंतर का कड़वा स्वाद चखा था। समय तो गतिमान रहा, लेकिन गोविंद में कभी चारित्रिक गिरावट