जि स दिन सूबेदार राजिंदर सिंह की पेंशन मुकर्रर हुई तो वो बहुत परेशान थे। ऐसा लगता था कि जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा ही जाता रहा। सूबेदार ने अपनी सारी उम्र फ़ौज में काटी थी। न जाने कितनी जंगों में जान पर खेल कर आधे दर्जन तमगे हासिल किए थे। कितनी ही छावनियों की ख़ाक छानी थी। अपनी बहादुरी और मुस्तैदी से न जाने कितने अफ़सरों की खुशनूदी हासिल की थी। मामूली सिपाही से जमादार और जमादार से सूबेदार मुकर्रर हुए थे। फ़ौज का कोई ऐसा काम नहीं था जिसमें उन्होंने अपना सिक्का न बिठाया हो। निशाने बाजी में