भगवान्‌ के चौबीस अवतारों की कथा -8

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श्रीकृष्णावतार की कथा—‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥’ ‘साधु-पुरुषोंके परित्राण, दुष्टोंके विनाश और धर्मसंस्थापनके लिये मैं युग-युगमें प्रकट होता हूँ'—अपने इस वचनको पूर्ण चरितार्थ करते हुए अखिलरसामृतसिन्धु, षडैश्वर्यवान्, सर्वलोकमहेश्वर स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण भाद्रपदकी कृष्णाष्टमीकी अर्धरात्रिको कंसके कारागारमें परम अद्भुत चतुर्भुज नारायणरूपसे प्रकट हुए। वात्सल्यभावभावितहृदया माता देवकीकी प्रार्थनापर भक्तवत्सल भगवान्‌ने प्राकृत शिशुका-सा रूप धारण कर लिया। श्रीवसुदेवजी भगवान्‌के आज्ञानुसार शिशुरूप भगवान्‌को नन्दालयमें श्रीयशोदाके पास सुलाकर बदलेमें यशोदात्मजा जगदम्बा महामायाको ले आये। गोकुलमें नन्दबाबाके घर ही जातकर्मादि महोत्सव मनाये गये। भगवान् श्रीकृष्णकी जन्मसे ही सभी लीलाएँ अद्भुत और अलौकिक हैं। पालनेमें झूल रहे थे—उसी समय लोकबालघ्नी रुधिराशना पिशाचिनी पूतनाके