प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 6

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अगर सुभ्रत पहले से उसके इस वार को पहचान नहीं लेता तो इस बार उसकी हड्डियों का चूरमा बन गया होता, हरेन के वार करते ही सुभ्रत दूसरी दिशा में उछल गया इससे उसे चोट तो लगी पर उससे से कम जो उसे हरेन के उस लोहे के बैंत से लग हरेन थी। “कौन.....कौन...मधुलिका? हरेन” अपनी पूरी ताकत से लगभग चिल्लाते हुए सुभ्रत ने हरेन से पुछा। अब आगे ...........प्रेमी आत्मा मरीचिका - ०६  “हरामी साले, उसका लहजा कहर भरा था वो नथुने फूला-फुलाकर हवा में किसी जानी-पहचानी बूं को सूंघने लगा था। सुबह के धुंधले में सुभ्रत की मुंहबोली माँ हमेशा की तरह