सन्यासी -- भाग - 27

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सुमेर सिंह की फाँसी की सजा माँफ होने पर वरदा ने जयन्त को धन्यवाद किया और उससे बोली...."जयन्त! आज सच्चाई की जीत हुई है,भले ही मैंने इस लड़ाई में बहुत कुछ खो दिया है लेकिन अब मेरी अन्तरात्मा को बहुत सुकून है""मैं आपके मन की बात भलीभाँति समझ सकता हूँ चाचीजी!",जयन्त बोला..."अब सोचती हूँ की बनारस छोड़कर गाँव चली जाऊँ,वहीं थोड़ी सी जमीन है तो खेतीबाड़ी करके अपना और अपने बच्चों का पेट पालूँगी",वरदा जयन्त से बोली..."नहीं! चाची जी! आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है,आप यहीं रहकर अपने पति का कारोबार सम्भालिएँ", जयन्त वरदा से बोली...."मुझे कुछ भी नहीं