जब सबने नाश्ता कर लिया तो शिवनन्दन जी हरदयाल से बोले...."तो हरदयाल! अब हम सभी को निकालना चाहिए","जी! अब ना रोकूँगा साहब जी!,आपने मेरी बात का मान रखा और रात भर को यहाँ ठहरे,इतने में ही मुझे सन्तुष्टि हो गई",हरदयाल बोला..."तो ठीक है हरदयाल भइया! अब हम सभी को इजाज़त दीजिए,ईश्वर ने चाहा तो फिर कभी मुलाकात होगी" और ऐसा कहकर नलिनी ने आँची का माथा चूमकर उसे अपने गले से लगा लिया और उससे बोली..."बेटी! तूने बहुत सेवा की मेरे बच्चे की और हम सब की भी,मैं तुझे उपहार स्वरूप कुछ दे भी दूँ तो ये तेरा अपमान होगा,क्योंकि