सन्यासी -- भाग - 22

  • 1.4k
  • 555

अभी नलिनी और जयन्त आपस में बातें कर ही रहे थे कि तभी आँची बाहर से बरतन धोकर ले आई,फिर उसने नलिनी की चारपाई के बगल में धरती पर पुआल डालकर अपना बिस्तर बिछाया और उस पर लेट गई,तो नलिनी ने उससे कहा..."बेटी! तुम्हारी माँ नहीं है तो तुम्हें ही सारे काम सम्भालने पड़ते हैं""हाँ! माँ जी! लेकिन अब तो आदत सी हो गई है,मैं जब बहुत छोटी थी,तब माँ छोड़कर चली गई थी,तब से ही मैं घर के काम काज करने लगी थी",आँची बोली..."वैसे क्या हुआ था तुम्हारी माँ को?",नलिनी ने पूछा...तब जयन्त को लगा कहीं ऐसा ना हो