सन्यासी -- भाग - 21

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हरदयाल बनारस पहुँच गया और जयन्त के दिए हुए पते को लेकर लोगों से उसके घर का पता पूछ पूछकर उसके घर भी पहुँच गया,वो उसके घर पहुँचा तो इतना बड़ा मकान देखकर हरदयाल का सिर चकरा गया और उसने मन ही मन सोचा...."लगता है बहुतई ज्यादा अमीर आदमी हैं जयन्त बाबूजी! लेकिन उनके भीतर नाममात्र का भी घमण्ड नहीं है, मेरे घर में रहकर रुखी सूखी खाकर ही खुश रह रहे हैं,उन्होंने मेरे यहाँ के खाने को देखकर कभी मुँह नहीं बनाया"     उसके बाद उसने घर के दरवाजे पर पहुँचकर जोर जोर से दरवाजे पर दस्तक देना शुरू कर