जहां एक तरफ जतिन अपने मन मे मैत्री को आठवां वचन दे रहा था वहीं दूसरी तरफ मैत्री भी उन सात वचनो के बाद जो जतिन ने मैत्री को दिये थे.. अपने मन से जतिन को आठवां वचन दे रही थी... मैत्री अपने मन मे वचन दे रही थी कि "मै आपका हमेशा ध्यान रखुंगी, एक अर्धांगिनी के तौर पर मै अपने सारे कर्तव्यो का पालन करूंगी, मै अपनी सासू मां, ससुर जी की पूरी निष्ठा और सच्ची श्रद्धा के साथ सेवा करूंगी, मै अपने इस नये परिवार को प्रेम के एक ही सूत्र मे बांध कर रखूंगी, किसी पराये