संडे की दोपहर । प्रमोद जी एक रिश्तेदार आपके यहां जाने के लिए मेट्रो में चढ़े। अमूमन हर समय खचाखच भरी रहने वाली मेट्रो आज संडे का दिन और दोपहर होने के कारण खाली पड़ी थी। हां सीटों पर लोग बैठे थे। प्रमोद जी ने सीट खोजने के लिए इधर-उधर नजर दौड़ाई तो उन्हें एक सीट खाली नजर आई और वह तेजी से जाकर उस सीट पर बैठ गए। गर्मी के दिन थे। कुछ देर तो उन्हें अपनी ऊपर नीचे चलती सांसों को सही करने व पसीने सुखाने में ही लग गई। फिर थोड़ा अपने आसपास के लोगों पर गौर किया। सभी अपने मोबाइल में