उजाले की ओर –संस्मरण

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=================== स्नेहिल नमस्कार मित्रो भीग उठता है मन जब देखते हैं कि रिश्तों में गांठ पड़ रही है। यदि उसे तुरंत खोलने की कोशिश न की जाय तो वह दिनों दिन और मज़बूत होती जाती है।वही गांठ ज़ख़्म में परिवर्तित हो जाती है क्योंकि उसमें चीरा लगाना पड़ता है जैसे शरीर के किसी अंग में कोई गांठ बनने लगे और उसका तुरंत इलाज़ न किया जाए तो आॉप्रेशन करना पड़ता है। अब वह कितने दिनों में ठीक होगी,होगी भी या नासूर बनकर रह जाएगी, कहा नहीं जा सकता। शरीर के ज़ख़्म हों या मन के जितने पुराने होते हैं उसकी