सदी की शादी

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“सदी की शादी” “जय श्रीराम शुक्लाजी, कहाँ से लौट रहे हैं इतनी गर्मी में ? आसमान स आग बरस रही है और आप स्कूटर घर में रखकर साइकिल भांज रहे हैं । काहे बचा रहे हैं इतना पैसा” मैंने उन्हें अभिवादन करते हुए उन्हें शब्दों की चिकोटी काटने की कोशिश की। राम, कैसे हो कुमार खुराफाती। तुम खुराफात से बाज नहीं आओगे। मंचीय कविता की दुकान आजकल बंद है क्या? जो तुम सड़क पर दिख रहे हो । रुके हैं तो कविता न सुनाने लगना। कुछ ठंडा वगैरह पिलाओ। मंचो पर मानदेय वाले लिफाफे तो खूब लेते हो सुना है