राकेश ठेला सरकाते सरकाते मंदिर के पीछे वाले मैदान में आ गया। अभी सवेरे के साढ़े आठ ही बजे थे। हल्की हल्की धूप आने लगी थीं।राकेश ठेले के पास ही नीचे बैठ गया। जुराबे खोल दी और कंबल को भी उतार कर ठेले के ऊपर टांग दिया।वह केवल लंबी बाजु के शर्ट और पेंट पहने था।अब उसे यह तो एहसास हो गया कि आज बाज़ार नहीं खुलेगा। तो वह शांति से बैठ गया।सब्जियों पर पानी का छींटा मार उन्हें कपड़े से ढक कर छोड़ दिया। बचे हुए पैसे निकाल कर गिने तो केवल बाईस सो रुपए निकले। बाकी तो सब्जियों