सपनो का शुभ अशुभ फल - भाग 25

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सपनें -नत्वा जिनेन्द्रं गतसर्वदोषं, स्वानन्दभूतं धृतशान्तरूपम्।नरामरेन्द्रैर्नुतपादयुग्मं, श्रीवीरनाथं प्रणमामि नित्यम्।।नाना प्रकार के कर्मों से यह संसारी आत्मा क्षण क्षण में जरा से निमित्तों को प्राप्त कर आकुल—व्याकुल हो उठता है। जागृत व सचेत अवस्था में तो नाना प्रकार के मन के घोड़े दौड़ाता रहता है लेकिन आश्चर्य यह है कि जब यह प्राणी शारीरिक व मानसिक चेष्टाओं में व्यस्त होने पर थकान का अनुभव करता है तथा उसे दूर करने का उपाय सोचता है तब आश्रय एकान्त स्थान का लेता है और वहाँ विश्राम कर समस्त िंचताओं से दूर होने के लिए निद्रादेवी की गोद में अपने को समर्पित कर देता