बुढिया की फरियाद आज समझ आया ये कलयुग नही घोर कलयुग है उस बुढिया को देखकर । बुढिया को भटकते हुए लगभग एक महीना होने को आया था।जल संस्थान मे चक्कर लगाते हुए, पर कोई सुनवाई नही ,रोज आंखो मे आँसू भर के चली जाती। किसी पहाड़ी जगह से आती थी हर दूसरे तीसरे दिन, बस हमेशा एक ही साड़ी मे, शायद एक ही होगी उसके पास, बहुत बूढ़ी थी और गरीब भी , पैदल ही आती जाती थी या कोई तरस खाकर छोड़ देता होगा पता नही, एक दिन पास के मन्दिर मे देखा तो रो रही थी और जल संस्थान के कर्मचारी को