फागुन के मौसम - भाग 44

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दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान भी नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने