ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 2

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पूरे रास्ते अपने बेटी के बारे में सोचकर; सोचकर सुखविंदर जी का दिल बैचेन हो रहा था ।बाहर से तो खुद को शांत और मजबूत रखने की जद्दोजहद में लगे हुए थे पर आख़िरकार उनके अंदर भी तो एक बाप का दिल था,जो किसी अनहोनी के डर से विचलित हो रहा है।कभी खुद को दिलासा देते कि उनकी बेटी सही सलामत होगी तो वहीं दूसरी तरफ़ भगवान से मन ही मन प्रार्थना कर रहे थे।इसी जद्दोजहद में सुखविंदर जी पुलिस स्टेशन पहुँच जाते हैं कुछ दूरी चलने के बाद वह जैसे ही स्टेशन के अंदर कदम रखते हैं, तो अंदर