अब आगे, जब अरु आरती की थाल, काव्या की तरफ बढ़ाती हैं तो काव्या अपना हाथ उठती हैं जिसे देख अरु अपनी आंखे बंद कर लेती हैं तो काव्या के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती हैं जिसे देख काव्या के दादा रघुनाथ जी, काव्या से कहते है, "क्या काव्या, मेरी नन्नी सी जान को क्यू डरा कर रही हैं ..?" अपने दादा रघुनाथ जी की बात सुन, अरु अपनी आंखे खोल के देखती है तो उस को पता चलता है कि उस की बड़ी बहन काव्या ने अपना हाथ उस को मारने के लिए नही बल्कि आरती लेने के