घातक कथाएँ - अलंकार रस्तोगी

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व्यंग्य से पहलेपहल मेरा वास्ता/परिचय नवभारत टाईम्स में छपने वाले शरद जोशी जी के अख़बारी कॉलम के ज़रिए हुआ। सरल शब्दों में उनकी लेखनी से निकला एक-एक व्यंग्य मुझे कहीं न कहीं..कुछ न कुछ सोचने एवं मुस्कुराने की वजह दे जाता था और मज़े की बात ये कि तब मुझे पता भी नहीं था कि व्यंग्य किस चिड़िया का नाम है और वो कहाँ..किस जंगल में और किस तरह के घोंसले में पाई जाती है।शरद जोशी जी के लेखन में मुझे उनके द्वारा इस्तेमाल की गयी सरल भाषा एवं पठनीयता आकर्षित करती थी कि किस तरह गंभीर से गंभीर मुद्दों