लच्छू को रोता हुआ देखकर लखनलाल घबरा गया और उसने उसके पास जाकर उसे झकझोरते हुए पूछा... "का हुआ हमारी फागुनिया को,तू कुछ बोलता काहे नहीं है", "अब मैं क्या बोलूँ लखन! तू खुद ही चलकर देख ले कि वो किस हालत में है",लच्छू रोते हुए बोला... "क्या बक रहा है तू!",लखनलाल जोर से चीखा... "मैं सच कहता हूँ लखन! हमारी फागुनिया अब इस दुनिया में नहीं रही"ऐसा कहकर लच्छू दोबारा दहाड़े मार मारक रोने लगा... लच्छू की बात सुनकर लखनलाल अवाक् रह गया,अब उसके होश गुम हो चुके थे,वो चक्कर खाकर गिरने को हुआ तो जयन्त ने उसे सम्भाल