शून्य से शून्य तक - भाग 48

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48=== “क्या बात है आशी? ”मनु भी दरवाज़े से हटकर अंदर आ गया|  “इतना घबरा क्यों रहे हो? डरते हो मुझसे? ”उसने सहज होकर पूछा|  मनु के लिए आशी का यह व्यवहार अप्रत्याशित था| कहाँ तो वह उससे बात तक नहीं करती थी, ज़रा सी भी लिफ़्ट नहीं देती थी, जहाँ उसे देखते ही वह वहाँ से ऐसे गायब हो जाती थी जैसे गधे के सिर से सींग!फिर आज ऐसा क्या प्यार आ गया था उसे जो मनु के कमरे में, वो भी अकेले में बिंदास चली आई थी| वह तो पहले से ही उसके सामने आने से बचता रहा