शून्य से शून्य तक - भाग 47

47==== अगले दिन का सुबह का वातावरण हमेशा की तरह था। चुप्पी से भरा!हाँ, एक बदलाव हुआ था कि वह अभी कई दिनों से सबके साथ बैठकर नाश्ता करने लगी थी और कई बार यह भी प्रयास करती थी कि पापा और मनु के साथ ऑफ़िस निकल जाए| रेशमा कॉलेज चली जाती थी और घर में बस घर के सेवक ही रह जाते| अब उसका मन भी यह सोचकर धड़कने लगा था कि जब मनु और रेशमा यहाँ से अपनेघर चले जाएंगे तब यहाँ कितना सूना हो जाएगा| इतने दिनों से साथ रहते-रहते अब आशी को भी घर ‘घर’लगने लगा