शून्य से शून्य तक - भाग 45

45==== दो/तीन दिन यूँ ही चुप्पी से भरे हुए बीते| सारा वातावरण खामोशी से भर गया था| सभी के चेहरों पर उदासी थी| दीनानाथ सोनी के बगीचे में आकर खड़े हुए , उन्हें लगा बगीचा भी उदास हो गया है| वैसे तो कैसे मुस्कुराते रहते थे सारे गुलाब और गुलाब ही क्या पूरा बगीचा! आज जैसे इन्हें भी पता चल गया था कि घर से बिटिया की विदाई हुई है| वैसे भी बेटी की विदाई से अपने ही नहीं गैरों की आँखों और मन में भी उदासी भर जाती है|  “अब इतने भी उदास न हों मालिक, आशिमा बीबी को