शून्य से शून्य तक - भाग 41

41==== आशी के मन में कितना ऊहापोह था, यह तो वही जानती थी लेकिन उसे इस स्थिति में फँसने के लिए कहा किसने था? कब से पिता उसके आगे-पीछे घूमते रहे थे लेकिन उसकी ज़िद्दी ‘न’ मज़ाल था जो ‘हाँ’में बदलने का एक भी संकेत देती हो |  अब दीना जी के पास अपनी बेटी से अधिक ज़िम्मेदारी सहगल के बच्चों की थी | मनु को यदि कोई सहारा मिल जाता तो वह अपनी संवेदना साझा कर सकता लेकिन आशी ! उसको समझाना आसान ही नहीं, असंभव था | आज इस नीरव वातावरण में भी आशी अपनी बीती हुई ज़िंदगी