वो लकड़ी का टुकड़ा श्रेयस से कुछ ही दूरी पर हवा में लहरा रहा था,ये देखकर आंशिका के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई,उसकी आँखें फैल गई और माथे पे शिकन उभर आई,वो फुर्ती के साथ दौड़ते हुए और उस टुकड़े को श्रेयस के शरीर की ओर बढ़ाने की कोशिश करने लगी,उसने इतनी ताक़त लगा दी कि उसकी वजह से उस टुकड़े को पकड़ा था वहां दरारें पड़ने लगी और इतना जोर लगाने की वजह से उसके हाथ से भी खून आने लगा था लेकिन वो लकड़ी का टुकड़ा टस से मस नहीं हुआ, धीरे-धीरे आंशिका के माथे पर शिकन